पर्वतमाला में चील का टीला नामक पहाड़ी पर आमेर दुर्ग एवं मावता झील के ऊपरी ओर बना किला है।इस दुर्ग का निर्माण जयसिंह द्वितीय ने १७२६ ई. में आमेर दुर्ग एवं महल परिसर की सुरक्षा हेतु करवाया था और इसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।जयगढ़ दुर्ग को जीत का किला भी कहा जाता है। यह दुर्ग आमेर में स्थित है, जयपुर शहर सीमा में। यह किला १७२६ में बनकर तैयार हुआ था। यहाँ पर विश्व की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है।
जयपुर.राजा-रजवाड़े के लिए पूरी दुनिया में फेमस जयपुर में एक ऐसी तोप रखी हुई है, जिसके गोले से शहर से 35 किलोमीटर दूर एक गांव में तालाब बन गया। आज भी यह तालाब मौजूद है और गांव के लोगों की प्यास बुझा रहा है। अरावली की पहाड़ियों पर बना जयगढ़ दुर्ग 1726 ई. में निर्मित इस किले में विश्व की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है। जयगढ़ दुर्ग को जीत का किला भी कहा जाता है।
विश्व की सबसे बड़ी यह तोप जयगढ़ किले के डूंगर दरवाजे पर रखी है। तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। जब जयबाण तोप को पहली बार टेस्ट-फायरिंग के लिए चलाया गया था तो जयपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित चाकसू नामक कस्बे में गोला गिरने से एक तालाब बन गया था।
35 किलोमीटर तक मार करने वाले इस तोप को एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर की जरूरत होती थी। अधिक वजन के कारण इसे किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही कभी युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था। इस तोप को सिर्फ एक बार टेस्ट के लिए चलाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि किले से दक्षिण की ओर 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तालाब उसी टेस्ट फायर के गोले के गिरने से बना था।
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