चंदेरी किला मध्य प्रदेश के गुना के नजदीक अशोक नगर जिले स्थित है। आज चंदेरी यहाँ की कशीदाकारी के काम व साड़ियों के लिए जाना जाता है। प्रसिद्ध संगीतकार बैजू बावरा की कब्र, कटा पहाड़ और राजपूत स्त्रियों के द्वारा किया गया सामूहिक आत्मदाह (जौहर) यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं।बाबर के द्वारा किये गए आक्रमण से यह किला लगभग तबाह हो गया था। कहा जाता है यह किला बाबर के लिए काफी महत्व का था इसलिए उसने चंदेरी के तत्कालीन राजपूत राजा से यह किला माँगा. बदले में उसने अपने जीते हुए कई किलों में से कोई भी किला राजा को देने की पेशकश भी की. परन्तु राजा चंदेरी का किला देने के लिए राजी ना हुआ। तब बाबर् ने किला युद्ध से जीतने की चेतावनी दी. चंदेरी का किला आसपास की पहाड़ियों से घिरा हुआ था इसलिए राजा आश्वस्त् व् निश्चिन्त था। गौरी की सेना में हाथी तोपें और भारी हथियार थे जिन्हें ले कर उन पहाड़ियों के पार जाना दुष्कर था और पहाड़ियों से नीचे उतरते ही चंदेरी के राजा की फौज का सामना हो जाता. कहा जाता है की बाबर निश्चय पर दृढ था और उसने एक ही रात में अपनी सेना से पहाडी को काट डालने का

अविश्वसनीय कार्य कर डाला. उसकी सेना ने एक ही रात में एक पहाडी को ऊपर से नीचे तक काट कर एक ऐसी दरार बना डाली जिससे हो कर उसकी पूरी सेना और साजो-सामान ठीक किले के सामने पहुँच गयी। सुबह राजा अपने किले के सामने पूरी सेना को देख भौचक्का रह गया। परन्तु राजपूत राजा ने बिना घबराए अपने कुछ सौ सिपाहियों के साथ गौरी की विशाल सेना का सामना करने का निर्णय लिया और अपनी राजपुतनियों को अंतिम विदा कर आत्मघाती युद्ध के लिए प्रस्थान किया। युद्ध में स्वाभाविक तौर पे समस्त राजपूत सेना का खात्मा हो गया। तब किले में सुरक्षित राज्पूत्नियों ने स्वयं को आक्रमणकारी सेना से अपमानित होने की बजाये स्वयं को ख़त्म करने का निर्णय लिया, एक विशाल चिता का निर्माण किया और सभी स्त्रियों ने सुहागनों का श्रृंगार धारण कर के स्वयं को उस चिता के हवाले कर दिया. जब गौरी और उसकी सेना किले के अन्दर पहुँची तो उसके हाथ कुछ ना आया। राजपूतों का शौर्य और राज्पूत्नियों के जौहर के इस अविश्वसनीय कृत्य वह इतना बोखलाया की उसने खुद के लिए इतने महत्त्वपूर्ण किले का संपूर्ण विध्वंस करवा दिया तथा कभी उस का उपयोग नहीं किया। आज भी वह रास्ता टूटे किले की बुर्जों से दिखता है जिसे गौरी ने एक ही रात में पहाडी को कटवा कर बनाया था तथा उसे "कटा पहाड़" या "कटी घाटी" के नाम से जाना जाता है। बाद के एक राजा ने उस जगह पर एक पत्थर का दरवाजा लगवाया. दरवाजे के ऊपर आज भी बाबर् की सेना द्वारा चलायी गई छेनियों के निशान देखे जा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित कालिंजर बुंदेलखंड का ऐतिहासिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। यहां का किला भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। 9वीं से 15वीं शताब्दी तक यहां चंदेल शासकों का शासन था। चंदेल राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक,शेर शाह सूरी और हुमांयू ने आक्रमण किए लेकिन जीतने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बावजूद मुगल कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: 1569 में अकबर ने यह किला जीता और अपने नवरत्नों में एक बीरबल को उपहारस्वरूप प्रदान किया। बीरबल क बाद यह किला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। छत्रसाल के बाद किले पर पन्ना के हरदेव शाह का अधिकार हो गया। 1812 में यह किला अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया।

एक समय कालिंजर चारों ओर से ऊंची दीवार से घिरा हुआ था और इसमें चार प्रवेश द्वार थे। वर्तमान में कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवा द्वार नामक तीन प्रवेश द्वार ही शेष बचे हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह नगर पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। पर्यटक यहां इतिहास से रूबरू होने के लिए नियमित रूप से आते रहते हैं।विंध्य की पहाड़ी पर 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह किला इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह है। किले में आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा नामक सात द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है।
किले के भीतर राजा महल और रानी महल नामक शानदार महल बने हुए हैं।इस मंदिर को चंदेल शासक परमार्दि देव ने बनवाया था। मंदिर में 18 भुजा वाले काल की विशाल प्रतिमा स्थापित है। काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। मंदिर के रास्ते पर भगवान शिव, काल भैरव, गणेश और हनुमान की प्रतिमाओं को पत्थर पर खूबसूरती से उकेरा गया है।
दौलताबाद महाराष्ट्र का एक नगर है। इसका प्राचीन नाम देवगिरि है।। मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी। यह औरंगाबाद जिले में स्थित है।यह शहर हमेशा शक्तिशाली बादशाहों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्ली की समस्त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्ली लानी पड़ी।देवगिरि दक्षिण भारत का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर जो आजकल दौलताबाद के नाम से पुकारा जाता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में २० डिग्री उत्तर अक्षांश तथा ७५ डिग्री पूर्व देशांतर में स्थित है। भीलम नामक राजा ने इसे ११वीं सदी में बसाया था और उसी काल से दो सौ वर्षों तक हिंदू शासकों ने देवगिरि पर शासन किया। १४वीं सदी से यह नगर मुसलमानों के अधिकार में चला आया। देवगिरि के समीप औरंगजेब के मरने पर यह जिला औरंगाबाद कहा जाने लगा।
मथुरा के यादव कुल से देवगिरि के हिंदू शासक संबंध जोड़ते हैं जिस कारण यहाँ का राजवंश 'यादव' कहलाया। हेमाद्री रचित 'ब्रतखंड' में तथा अभिलेखों के आधार पर दृढ़प्रहार देवगिरि के यादव वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष माना जाता है। भीलम शक्तिशाली नरेश था जिसने होयसल, चोल तथा चालुक्य राज्यों पर सफल आक्रमण किया था। उसके उत्तराधिकारी सिंघण ने इसे साम्राज्य का रूप दे दिया। युद्ध के फलस्वरूप देवगिरि राज्य खानदेश से अनंतपुर (मैसूर) तक तथा पश्चिमी घाट से हैदराबाद तक विस्तृत हो गया।
१३वीं सदी के देवगिरि नरेश कृष्ण का नाम अनेक लेखों में मिलता है। इसने वंश की प्रतिष्ठा की अभिवृद्धि की। कृष्ण के पुत्र रामचंद्र के शासन में खिलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन ने देवगिरि पर चढ़ाई की थी। अलाउद्दीन यहाँ से असंख्य धन लूटकर ले गया और उसके सेनापति काफूर रामचंद्र को बंदी बना लिया। कुछ समय पश्चत् रामचंद्र मुक्त कर दिया गया। यही कारण था कि देवगिरि के राज ने तैलंगाना के युद्ध में काफूर को हथियारों की मदद दी थी। शकंरदेव ने सिंहासन पर बैठने (१३१२ ई.) के बाद मुसलमानों से शत्रुता बढ़ा ली जिसका फल यह हुआ कि शंकरदेव को हराकर काफूर ने देवगिरि पर अधिकार कर लिया।दौलताबाद किला'-एक उपेक्षित किला ! न शोधकर्ताओं की नज़र पड़ती है न ही इसे संरक्षित रखने के प्रयाप्त उपाय किए जा रहे हैं। कमजोर दीवारें गिर रही हैं।.एक प्राचीन धरोहर भारत खोता जा रहा है ।इतिहास गवाह है -यही एक मात्र एक ऐसा किला है जिसे कभी कोई जीत नहीं सका.यह भारत के सबसे मजबूत किलों में एक मजबूत किला है। यह तीन मजिला है।यह शाही निवास जैसा ही था। हालांकि, यहाँ मस्जिद और स्नान जैसी सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाई है।