अजंता गुफाएं महाराष्ट्र, भारत में स्थित पाषाण कट स्थापत्य गुफाएं हैं। यह स्थल द्वितीय शताब्दी ई.पू. के हैं। यहां बौद्ध धर्म से सम्बंधित चित्रण एवं शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं।इनके साथ ही सजीव चित्रण भी मिलते हैं। यह गुफाएं अजंता नामक गांवे के सन्निकट ही स्थित हैं, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हैं। अजंता गुफाएं सन 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है।
‘’’नैशनल ज्यॉग्राफिक ‘’’ के अनुसार: आस्था का बहाव ऐसा था, कि ऐसा प्रतीत होता है, जैसे शताब्दियों तक अजंता समेत, लगभग सभी बौद्ध मंदिर, हिन्दू राजाओं के शासन और आश्रय के अधीन बनवाये गये हों।
गुफाएं एक घने जंगल से घिरी, अश्व नाल आकार घाटी में अजंता गांव से 3½ कि॰मी॰ दूर बनीं हैं। यह गांव महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से 106 कि॰मी॰ दूर बसा है। इसका निकटतम कस्बा है जलगाँव, जो 60 कि॰मी॰ दूर है, भुसावल 70 कि॰मी॰ दूर है। इस घाटी की तलहटी में पहाड़ी धारा वाघूर बहती है। यहां कुल 29 गुफाएं (भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा आधिकारिक गणनानुसार) हैं, जो कि नदी द्वारा निर्मित एक प्रपात के दक्षिण में स्थित है। इनकी नदी से ऊंचाई 35 से 110 फीट तक की है।
अजंता का मठ जैसा समूह है, जिसमें कई विहार (मठ आवासीय) एवं चैत्य गृह हैं (स्तूप स्मारक हॉल), जो कि दो चरणों में बने हैं। प्रथम चरण को गलती से हीनयान चरण कहा गया है, जो कि बौद्ध धर्म के हीनयान मत से संबंधित हैं। वस्तुतः हिनायन स्थविरवाद के लिये एक शब्द है, जिसमें बुद्ध की मूर्त रूप से कोई निषेध नहीं है। अजंता की गुफा संख्या 9, 10, 12, 13 15ए (अंतिम गुफा को 1956 में ही खोजा गया और अभि तक संख्यित नहीं किया गया है।) को इस चरण में खोजा गया था। इन खुदाइयों में बुद्ध को स्तूप या मठ रूप में दर्शित किया गया है।
दूसरे चरण की खुदाइयां लगभग तीन शताब्दियों की स्थिरता के बाद खोजी गयीं। इस चरण को भी गलत रूप में महायान चरण ९बौद्ध धर्म का दूसरा बड़ा धड़ा, जो कि कमतर कट्टर है, एवं बुद्ध को सीधे गाय आदि रूप में चित्रों या शिल्पों में दर्शित करने की अनुमति देता है।) कई लोग इस चरण को वाकाटक चरण कहते हैं। यह वत्सगुल्म शाखा के शासित वंश वाकाटक के नाम पर है। इस द्वितीय चरण की निर्माण तिथि कई शिक्षाविदों में विवादित है। हाल के वर्षों में, कुछ बहुमत के संकेत इसे पाँचवीं शताब्दी में मानने लगे हैं। वॉल्टर एम.स्पिंक, एक अजंता विशेषञ के अनुसार महायन गुफाएं 462-480 ई. के बीच निर्मित हुईं थीं।
प्रथम शताब्दी में हुए बौद्ध विचारों में अंतर से, बुद्ध को देवता का दर्जा दिया जाने लगा और उनकी पूजा होने लगी और परिणामतः बुद्ध को पूजा-अर्चना का केन्द्र बनाया गया, जिससे महायन की उत्पत्ति हुई।

आंग्ल-भारतीयों द्वारा विहारों हेतु प्रयुक्त अभिव्यंजन गुफा-मंदिर अनुपयुक्त माना गया। अजंता एक प्रकार का महाविद्यालय मठ था। ह्वेन त्सांग बताता है, कि दिन्नाग, एक प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक, तत्वज्ञ, जो कि तर्कशास्त्र पर कई ग्रन्थों का लेखक था, यहां रहता था। यह अभी अन्य साक्ष्यों से प्रमाणित होना शेष है। अपने चरम पर, विहार सैंकड़ों को समायोजित करने की सामर्थ्य रखते थे। यहां शिक्षक और छात्र एक साथ रहते थे। यह अति दुःखद है, कि कोई भी वाकाटक चरं की गुफा पूर्ण नहीं है। यह इस कारण हुआ, कि शासक वाकाटक वंश एकाएक शक्ति-विहीन हो गया, जिससे उसकी प्रजा भी संकट में आ गयी। इसी कारण सभी गतिविधियां बाधित होकर एकाएक रुक गयीं। यह समय अजंता का अंतिम काल रहा।
No comments:
Post a Comment